जलता कछुआ देख कर दिया मास्क्विटो रोय
मैं बाहर हूँ टापता, मानुष अंदर सोय.
तुलसी पंछी के पिए घटे न सरिता नीर,
मच्छर से न अनीमिया पर डेंगू है गंभीर.
मच्छर रखो पास में कछुआ देव बुझाय
मेरी तो मंशा यही बस पूरी हो जाय.
चलता जो बिजली का रैकेट छुवत भस्म कर जाय,
मच्छर हुआ तो क्या हुआ मैं क्या प्राणी नांय?
मच्छरों के स्कूलों में प्रातःकालीन प्रार्थना:
तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूँद के प्यासे हम......
मैं बाहर हूँ टापता, मानुष अंदर सोय.
तुलसी पंछी के पिए घटे न सरिता नीर,
मच्छर से न अनीमिया पर डेंगू है गंभीर.
मच्छर रखो पास में कछुआ देव बुझाय
मेरी तो मंशा यही बस पूरी हो जाय.
चलता जो बिजली का रैकेट छुवत भस्म कर जाय,
मच्छर हुआ तो क्या हुआ मैं क्या प्राणी नांय?
मच्छरों के स्कूलों में प्रातःकालीन प्रार्थना:
तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूँद के प्यासे हम......
No comments:
Post a Comment